लेह: ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी जन्नत की एक अनोखी कहानी

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लद्दाख की शांत वादियों में बसा लेह एक ऐसा शहर है, जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम सुंदरता से हर यात्री का दिल जीत लेती है। बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आसमान में तैरते बादल, प्राचीन मठों की घंटियाँ और ठंडी हवाओं का पवित्र स्पर्श—यह सब मिलकर लेह को एक अद्वितीय अनुभूति में बदल देते हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ इसके प्राकृतिक नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, लोगों की सरलता और इतिहास से भरे धरोहरों की भी अपनी एक खास पहचान है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का हर मोड़, हर दृश्य और हर कदम एक रोमांच बन जाता है। चाहे वो शांति से भरा शांति स्तूप हो या ऊँचे पहाड़ों की गोद में बसे मठ, हर स्थान मन को एक अनोखी ऊर्जा से भर देता है। लेह की गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है मानो समय थम-सा गया हो। रंग-बिरंगे प्रार्थना-झंडे हवा में लहराते हैं और सड़कों पर चलते लोग मुस्कुराहट के साथ “जुले” कहकर स्वागत करते हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान है जो भीड़-भाड़ से दूर शांति की तलाश में होते हैं। यहाँ की सुबहें सुनहरी धूप के साथ पहाड़ों के बीच च...

एक अनजान स्टेशन पर उतरी सुबह — एक यात्रा जिसने बहुत कुछ सिखाया

रात की ट्रेन दिल्ली से शिमला की ओर जा रही थी। डिब्बे में नींद और खामोशी का अजीब-सा संगम था। मैंने खिड़की से झाँका — बाहर के तारों भरे आसमान के नीचे, रेल की पटरी ऐसे मुड़ रही थी जैसे कोई पुरानी कहानी धीरे-धीरे खुल रही हो।

रात के करीब 3 बजे ट्रेन अचानक रुक गई। स्टेशन का नाम धुँध में छिपा था — “कुमारहट्टी”। न कोई अनाउंसमेंट, न भीड़। बस दो-तीन झपकती पीली लाइटें और ठंडी हवा में उड़ता कोहरा। मैं नीचे उतर आया, बिना किसी वजह के। बस एक अनजाने खिंचाव से।

प्लेटफ़ॉर्म के एक कोने में एक चायवाला था — लकड़ी की जलती हुई आग पर केतली रखे हुए। उसने मुस्कुराकर कहा —

“साहब, इतनी रात में उतर गए? यहाँ तो ज़्यादा कोई रुकता नहीं।”

मैंने हँसते हुए कहा —

“शायद रुकने का मन नहीं था, ठहरने का था।”

उसने जो चाय दी, वो किसी पाँच-सितारा कॉफ़ी से कहीं ज़्यादा सच्ची थी। आसमान में कोहरे के बीच से धीरे-धीरे भोर का रंग उतरने लगा। पहाड़ों की आकृतियाँ धुंध से उभर रहीं थीं, और पटरियों के किनारे खिलते जंगली फूल जैसे किसी ने जानबूझकर वहाँ रख दिए हों।

उस एक घंटे में मैंने महसूस किया —

“कभी-कभी मंज़िल से ज़्यादा मायने रखता है वो मोड़, जहाँ आप रुककर खुद से मिलते हैं।”

सुबह की पहली ट्रेन आई, और मैं वापस उसी में चढ़ गया। कुमारहट्टी स्टेशन पीछे छूट गया, लेकिन उसका सन्नाटा, वो चाय की महक, और वो एक घंटे की शांति — शायद हमेशा मेरे साथ रह गई।

अगर आप कभी जाएँ —
कुमारहट्टी (हिमाचल प्रदेश) शिमला जाते समय सोलन के पास एक छोटा स्टेशन है।
सुबह का समय सबसे सुंदर होता है — कोहरा, पहाड़, और सन्नाटा एक साथ।
और हाँ, वहाँ की चाय ज़रूर पीना।

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