लेह: ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी जन्नत की एक अनोखी कहानी

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लद्दाख की शांत वादियों में बसा लेह एक ऐसा शहर है, जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम सुंदरता से हर यात्री का दिल जीत लेती है। बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आसमान में तैरते बादल, प्राचीन मठों की घंटियाँ और ठंडी हवाओं का पवित्र स्पर्श—यह सब मिलकर लेह को एक अद्वितीय अनुभूति में बदल देते हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ इसके प्राकृतिक नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, लोगों की सरलता और इतिहास से भरे धरोहरों की भी अपनी एक खास पहचान है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का हर मोड़, हर दृश्य और हर कदम एक रोमांच बन जाता है। चाहे वो शांति से भरा शांति स्तूप हो या ऊँचे पहाड़ों की गोद में बसे मठ, हर स्थान मन को एक अनोखी ऊर्जा से भर देता है। लेह की गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है मानो समय थम-सा गया हो। रंग-बिरंगे प्रार्थना-झंडे हवा में लहराते हैं और सड़कों पर चलते लोग मुस्कुराहट के साथ “जुले” कहकर स्वागत करते हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान है जो भीड़-भाड़ से दूर शांति की तलाश में होते हैं। यहाँ की सुबहें सुनहरी धूप के साथ पहाड़ों के बीच च...

एक रिक्शावाले की बेटी बनी IAS



 संघर्ष की मिसालआरती के पिता, रामप्रसाद यादव, एक साधारण रिक्शा चलाने वाले हैं। सुबह से लेकर देर शाम तक पसीना बहाकर जो कुछ भी कमाते थे, उसमें मुश्किल से घर का खर्च चलता था। लेकिन उनके पास एक अमूल्य चीज़ थी — अपनी बेटी के सपनों पर अटूट भरोसा।आरती का बचपन तंगहाली में बीता। घर में न पढ़ने की अच्छी जगह थी, न बिजली का स्थायी इंतज़ाम। वो अक्सर स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी। स्कूल से लौटने के बाद माँ का हाथ बँटाना, छोटे भाई-बहनों की देखभाल और फिर किताबों में डूब जाना — यही उसका रोज़ का रूटीन था।

जब दसवीं कक्षा में उसने अपने शिक्षक से कहा कि वह IAS बनना चाहती है, तो सबने मज़ाक उड़ाया। किसी ने कहा, "इतना बड़ा सपना मत देखो, टूट जाएगा।" मगर उसके पिता ने उसका सिर सहलाते हुए कहा —

"बेटी, अगर तू ठान ले तो तेरा बाप तुझे मंज़िल तक छोड़ कर आएगा — चाहे पैदल ही क्यों न जाना पड़े!"आरती ने छात्रवृत्ति के सहारे ग्रेजुएशन किया। दिन में कॉलेज, शाम को ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाने में मदद और रात भर किताबों में डूब जाना — यही उसकी ज़िंदगी बन गई थी। UPSC की तैयारी के लिए उसने दिल्ली का रुख किया, लेकिन पैसे नहीं थे।तब उसके पिता ने अपनी जमा-पूँजी का रिक्शा भी गिरवी रख दिया। बोले,"बेटी को ऊँचा उड़ना है, रिक्शा फिर आ जाएगा!"

तीन साल तक कठिन परिश्रम, असफलता, और आंसुओं की अनगिनत रातों के बाद, आखिरकार साल 2024 में आरती ने UPSC की परीक्षा पास की और पूरे देश में 47वीं रैंक लाकर IAS अधिकारी बनी।जब रिजल्ट आया, पूरा गाँव झूम उठा। वो झोपड़ी जहाँ आरती कभी स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ती थी, आज वहाँ लोग उसे देखने आते हैं। उसके पिता, जो कभी दूसरों के बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते थे, अब गर्व से कहते हैं — "मेरी बेटी आज अफसर बन गई!"

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