लेह: ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी जन्नत की एक अनोखी कहानी

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लद्दाख की शांत वादियों में बसा लेह एक ऐसा शहर है, जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम सुंदरता से हर यात्री का दिल जीत लेती है। बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आसमान में तैरते बादल, प्राचीन मठों की घंटियाँ और ठंडी हवाओं का पवित्र स्पर्श—यह सब मिलकर लेह को एक अद्वितीय अनुभूति में बदल देते हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ इसके प्राकृतिक नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, लोगों की सरलता और इतिहास से भरे धरोहरों की भी अपनी एक खास पहचान है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का हर मोड़, हर दृश्य और हर कदम एक रोमांच बन जाता है। चाहे वो शांति से भरा शांति स्तूप हो या ऊँचे पहाड़ों की गोद में बसे मठ, हर स्थान मन को एक अनोखी ऊर्जा से भर देता है। लेह की गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है मानो समय थम-सा गया हो। रंग-बिरंगे प्रार्थना-झंडे हवा में लहराते हैं और सड़कों पर चलते लोग मुस्कुराहट के साथ “जुले” कहकर स्वागत करते हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान है जो भीड़-भाड़ से दूर शांति की तलाश में होते हैं। यहाँ की सुबहें सुनहरी धूप के साथ पहाड़ों के बीच च...

एक कप चाय और कुछ अधूरी बातें : शहर के कोने से एक कहानी

 


बारिश की कुछ बूँदें, ठंडी हवा, और हाथ में मिट्टी की कुल्हड़ में गर्म चाय...

शहर की भागती-भागती सड़कों के बीच एक कोना ऐसा भी था जहाँ वक्त रुक सा जाता था। कोई घड़ी नहीं चलती थी वहाँ, सिर्फ धुएँ की एक सीधी लकीर और चाय की धीमी चुस्की चलती थी।

वहीं एक पुरानी-सी लकड़ी की बेंच थी, जिस पर रोज़ शाम ठीक 6 बजे एक बुज़ुर्ग आ बैठते। उनका नाम किसी को नहीं पता था, और शायद ज़रूरत भी नहीं थी। उनका आना, एक कप चाय लेना, और फिर दूर कहीं खो जान- ये सब इतना नियमित हो गया था कि जैसे वो उस जगह का हिस्सा बन गए हों।

मैं भी वहीं बैठा करता था, अक्सर अकेला, कभी-कभी अपने साथ कुछ अधूरी बातें लेकर।

वो बुज़ुर्ग और उनकी ख़ामोशी

एक दिन मैंने पूछ ही लिया -

"बाबूजी, रोज़ अकेले क्यों आते हैं?"

उन्होंने मुस्कुरा कर कहा -

"कभी कोई साथ था, अब चाय ही बची है

साथ देने के लिए।"

उस एक लाइन ने जैसे पूरा जीवन समेट लिया हो।

मैं चुप हो गया। चाय सस्ती थी, लेकिन वो जवाब अनमोल था।

चाय: एक बहाना, एक साथी, एक कहानी

भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, एक एहसास है।

चाय के बहाने कितनी दोस्तियाँ बनी हैं,

कितने इश्क़ शुरू हुए हैं,

और न जाने कितनी अधूरी बातें धुएँ में उड़ गईं।

हर कुल्हड़ की दीवारों पर कोई ना कोई कहानी चिपकी होती है।

कोई पहली मुलाक़ात,

कोई आखिरी अलविदा,

या फिर वो बातें जो कभी हो ही नहीं पाईं।

शहर की भीड़ में एक कोना जो अपना सा लगता है

4 अरब कप चाय पी जाती है हर दिन भारत मेंआज भी जब उस चाय वाले के पास जाता हूँ,

वो बुज़ुर्ग नहीं आते अब।

किसी ने कहा, उनकी तबीयत बिगड़ गई थी।

कोई बोला — वो अब नहीं रहे।

पर उनके बैठने की जगह अब भी खाली नहीं होती।

वहाँ अब मेरी आदत बैठती है,

और उनकी यादें।

अधूरी बातें कभी खत्म नहीं होतीं

चाय तो ठंडी हो गई थी,

पर कुछ बातें अब भी गर्म हैं-

शायद किसी और शाम के लिए,

या किसी और की कहानी बनने के लिए।

आपकी सबसे यादगार चाय किसके साथ थी?


टिप्पणियाँ

  1. चाय की दुकानों पर घर के आसपास के लोगों से गपशप करना शायद ही कभी भुलाया जा सके - एक पाठक

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