लेह: ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी जन्नत की एक अनोखी कहानी

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लद्दाख की शांत वादियों में बसा लेह एक ऐसा शहर है, जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम सुंदरता से हर यात्री का दिल जीत लेती है। बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आसमान में तैरते बादल, प्राचीन मठों की घंटियाँ और ठंडी हवाओं का पवित्र स्पर्श—यह सब मिलकर लेह को एक अद्वितीय अनुभूति में बदल देते हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ इसके प्राकृतिक नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, लोगों की सरलता और इतिहास से भरे धरोहरों की भी अपनी एक खास पहचान है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का हर मोड़, हर दृश्य और हर कदम एक रोमांच बन जाता है। चाहे वो शांति से भरा शांति स्तूप हो या ऊँचे पहाड़ों की गोद में बसे मठ, हर स्थान मन को एक अनोखी ऊर्जा से भर देता है। लेह की गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है मानो समय थम-सा गया हो। रंग-बिरंगे प्रार्थना-झंडे हवा में लहराते हैं और सड़कों पर चलते लोग मुस्कुराहट के साथ “जुले” कहकर स्वागत करते हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान है जो भीड़-भाड़ से दूर शांति की तलाश में होते हैं। यहाँ की सुबहें सुनहरी धूप के साथ पहाड़ों के बीच च...

राज्य: एक आवश्यक बुराई – हर्बर्ट स्पेंसर का दृष्टिकोण

 

राज्य एक आवश्यक बुराई है — यह विचार गहरे राजनीतिक और दार्शनिक विमर्श का हिस्सा रहा है। यह कथन प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) से जुड़ा है, जिन्होंने राज्य की भूमिका पर कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। वे मानते थे कि राज्य का अस्तित्व इसलिए है क्योंकि मनुष्य स्वयं अपने नैतिक दायित्वों का पालन नहीं करता। अगर समाज में सभी व्यक्ति आत्म-नियंत्रण, न्याय और पारस्परिक सहयोग से कार्य करें, तो राज्य की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।

हरबर्ट स्पेंसर जैसे चिंतकों के अनुसार, राज्य का निर्माण मानव समाज की कमजोरियों को संतुलित करने के लिए हुआ है। यह व्यवस्था समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी तो है, लेकिन यह हमेशा स्वतंत्रता पर नियंत्रण भी लगाता 

सीलिए इसे "आवश्यक बुराई" कहा गया है — ऐसी बुराई जो न हो तो अराजकता फैले, और हो तो स्वतंत्रता सीमित हो जाती है।

ऐसे कई विचारक रहे हैं जिन्होंने राज्य की सीमाओं और उसकी अनिवार्यता को लेकर सवाल उठाए। थॉमस पेन (Thomas Paine), एक और विख्यात विचारक, ने भी कहा था 

कि "राज्य एक जरूरी बुराई है," खासकर तब जब वह लोगों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है या अपने दायरे से बाहर जाकर सत्ता का दुरुपयोग करता है।

राजनीतिक दर्शन में यह विचार बार-बार सामने आता है कि राज्य को छोटा, सीमित और जवाबदेह होना चाहिए। लिबर्टेरियन विचारधारा, जो न्यूनतम राज्य और अधिकतम व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पक्षधर है, इसी धारणा पर आधारित है।

आधुनिक युग में भी यह बहस जीवंत है — क्या राज्य हमारी स्वतंत्रता की रक्षा करता है, या उसे सीमित करता है? क्या हम ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहाँ राज्य की जरूरत ही न हो?

इन सवालों का कोई आसान उत्तर नहीं है, लेकिन यह निश्चित है कि "राज्य एक आवश्यक बुराई है" केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक चुनौती है — समाज के हर नागरिक के लिए यह सोचने की कि हम किस तरह की व्यवस्था में जीना चाहते हैं।


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