लेह: ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी जन्नत की एक अनोखी कहानी

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लद्दाख की शांत वादियों में बसा लेह एक ऐसा शहर है, जहाँ प्रकृति अपनी अनुपम सुंदरता से हर यात्री का दिल जीत लेती है। बर्फ से ढकी चोटियाँ, नीले आसमान में तैरते बादल, प्राचीन मठों की घंटियाँ और ठंडी हवाओं का पवित्र स्पर्श—यह सब मिलकर लेह को एक अद्वितीय अनुभूति में बदल देते हैं। लेह की खूबसूरती सिर्फ इसके प्राकृतिक नज़ारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ की संस्कृति, लोगों की सरलता और इतिहास से भरे धरोहरों की भी अपनी एक खास पहचान है। ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ का हर मोड़, हर दृश्य और हर कदम एक रोमांच बन जाता है। चाहे वो शांति से भरा शांति स्तूप हो या ऊँचे पहाड़ों की गोद में बसे मठ, हर स्थान मन को एक अनोखी ऊर्जा से भर देता है। लेह की गलियों में घूमते हुए ऐसा लगता है मानो समय थम-सा गया हो। रंग-बिरंगे प्रार्थना-झंडे हवा में लहराते हैं और सड़कों पर चलते लोग मुस्कुराहट के साथ “जुले” कहकर स्वागत करते हैं। यह क्षेत्र न सिर्फ रोमांच प्रेमियों के लिए स्वर्ग है, बल्कि उन लोगों के लिए भी आदर्श स्थान है जो भीड़-भाड़ से दूर शांति की तलाश में होते हैं। यहाँ की सुबहें सुनहरी धूप के साथ पहाड़ों के बीच च...

रीवा का सफ़ेद बाघ: असली कहानी और मोहन की विरासत

भारत के मध्य प्रदेश राज्य का रीवा शहर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है, बल्कि यह सफ़ेद बाघों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। सफ़ेद बाघों की यह दुर्लभ प्रजाति पहली बार 1951 में रीवा के जंगलों में देखी गई थी। इस कहानी के मुख्य नायक हैं मोहन, दुनिया के पहले कैद किए गए सफ़ेद बाघ।

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 मोहन का जीवन और विरासत

27 मई 1951 को महाराजा मार्तंड सिंह ने रीवा के जंगलों में एक सफ़ेद बाघ को पकड़ा। इस बाघ का नाम रखा गया मोहन। मोहन की सबसे बड़ी खासियत उसका शुद्ध सफ़ेद रंग और नीली आंखें थीं। यह रंग सामान्य बाघों से पूरी तरह अलग था। मोहन को गोविंदगढ़ महल में रखा गया और वहां से इसकी कई संताने हुईं। यही संताने आगे चलकर सफ़ेद बाघों की नस्ल बन गई। मोहन के कारण आज लगभग सभी सफ़ेद बाघों की वंशावली इसी से जुड़ी है। इसलिए मोहन को "दुनिया का पिता सफ़ेद बाघ" कहा जाता है।मोहन की संतानों ने सफ़ेद बाघों को कैद में संरक्षित करने में भी मदद की, क्योंकि जंगली जंगल में उनका अस्तित्व मुश्किल था। मोहन की विरासत आज भी रीवा और मुकुंदपुर में जीवित है।

 सफ़ेद बाघ की आनुवंशिक विशेषताएँ

सफ़ेद बाघ प्राकृतिक रूप से लेउसिज़्म (leucism) के कारण सफ़ेद रंग का होता है। यह अल्बिनो नहीं होता। सफ़ेद बाघ पैदा होने के लिए दोनों माता-पिता में रीसिव जीन होना जरूरी है।

मोहन और उसकी संतानों के कारण सफ़ेद बाघों की यह नस्ल बनी। हालांकि, सफ़ेद बाघों की संख्या बनाए रखने के लिए अक्सर इनब्रिडिंग किया गया। इसके कारण कई स्वास्थ्य समस्याएँ भी देखी गईं, जैसे हृदय रोग और दृष्टि संबंधी परेशानियाँ। फिर भी, मोहन की वंशावली ने सफ़ेद बाघों की विरासत को आज तक सुरक्षित रखा।

 मुकुंदपुर सफ़ारी और संरक्षण

आज रीवा के पास मुकुंदपुर सफ़ारी है, जिसे दुनिया की पहली सफ़ेद बाघ सफ़ारी माना जाता है। यहाँ मोहन की संतानों और अन्य जानवरों को प्राकृतिक वातावरण के करीब रखा गया है।सफारी का मुख्य उद्देश्य मोहन की वंशावली और आनुवंशिक विविधता को सुरक्षित रखना है। यह सफारी पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।मुकुंदपुर सफ़ारी में सफ़ेद बाघों की संख्या बढ़ाने, उनकी देखभाल और संरक्षण के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं। यह केंद्र सफ़ेद बाघों की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का काम करता है।

 

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