लहरों पर लौटा इतिहास : आईएनएसवी कौंडिन्य की पहली ऐतिहासिक यात्रा

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  भारतीय नौसेना का नौकयन पोत कौंडिन्य, जो भारतीय नौसेना का स्वदेशी रूप से बनाया गया पारंपरिक नौकायन पोत है, 29 दिसम्‍बर 2025 को गुजरात के पोरबंदर से ओमान सल्तनत के मस्कट के लिए अपनी पहली विदेशी यात्रा पर रवाना हुआ। यह ऐतिहासिक अभियान भारत की प्राचीन समुद्री विरासत को एक जीवित समुद्री यात्रा के माध्यम से पुनर्जीवित करने, समझने और मनाने के प्रयासों में एक प्रमुख मील का पत्थर है। इस पोत को औपचारिक रूप से वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन, फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, पश्चिमी नौसेना कमान ने, भारत में ओमान सल्तनत के राजदूत महामहिम इस्सा सालेह अल शिबानी और भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों और विशिष्ट मेहमानों की गरिमामयी उपस्थिति में हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। आईएनएसवी कौंडिन्य का निर्माण पारंपरिक सिलाई वाली जहाज निर्माण तकनीकों का उपयोग करके किया गया है, जिसमें प्राकृतिक सामग्री और तरीकों का इस्तेमाल किया गया है जो कई सदियों पुराने हैं। ऐतिहासिक स्रोतों और चित्रात्मक साक्ष्यों से प्रेरित, यह पोत भारत की स्वदेशी जहाज निर्माण, नाविकता और समुद्री नेविगेशन की समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व करत...

वाराणसी आगरा की मलाई – सुबह की मीठी परंपरा

 


भारत में मिठाइयों की परंपरा सदियों पुरानी है और इन्हीं मिठाइयों में मलाई से बनी मिठाइयों का एक विशेष स्थान है। दूध से बनने वाली यह मलाई न सिर्फ स्वाद में लाजवाब होती है, बल्कि हर क्षेत्र में इसका अपना अलग रूप और पहचान है। खासतौर पर आगरा की मलाई और वाराणसी की मलाई देशभर में प्रसिद्ध हैं।

मलाई क्या है और क्यों है इतनी खास

मलाई दूध को धीमी आंच पर उबालने से बनने वाली एक प्राकृतिक परत होती है। यही मलाई आगे चलकर कई प्रसिद्ध मिठाइयों का आधार बनती है। मलाई से बनी मिठाइयाँ मुलायम, हल्की और मुंह में घुल जाने वाली होती हैं, जो हर उम्र के लोगों को पसंद आती हैं।


यह सर्दियों के मौसम में खास तौर पर बनाई जाती है, जब दूध की गुणवत्ता सबसे अच्छी होती है। आगरा की मलाई हल्की मिठास वाली, झागदार और बेहद नरम होती है। इसमें केसर, इलायची और कभी-कभी गुलाब जल का प्रयोग किया जाता है, जो इसके स्वाद को और भी खास बना देता है।


रात भर दूध को खास तरीके से फेंटकर उसमें हवा भरी जाती है, जिससे यह मलाई बादलों जैसी हल्की हो जाती है। इसमें बहुत कम चीनी होती है, जिससे दूध का प्राकृतिक स्वाद बना रहता है। वाराणसी की गलियों में यह मलाई एक सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है।


आगरा और वाराणसी दोनों ही शहरों में मलाई सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि परंपरा है। यह त्योहारों, सर्दियों की सुबह और खास मेहमानों के स्वागत से जुड़ी हुई है। स्थानीय लोगों के लिए यह बचपन की यादों और स्वाद का संगम है।


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