लहरों पर लौटा इतिहास : आईएनएसवी कौंडिन्य की पहली ऐतिहासिक यात्रा

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  भारतीय नौसेना का नौकयन पोत कौंडिन्य, जो भारतीय नौसेना का स्वदेशी रूप से बनाया गया पारंपरिक नौकायन पोत है, 29 दिसम्‍बर 2025 को गुजरात के पोरबंदर से ओमान सल्तनत के मस्कट के लिए अपनी पहली विदेशी यात्रा पर रवाना हुआ। यह ऐतिहासिक अभियान भारत की प्राचीन समुद्री विरासत को एक जीवित समुद्री यात्रा के माध्यम से पुनर्जीवित करने, समझने और मनाने के प्रयासों में एक प्रमुख मील का पत्थर है। इस पोत को औपचारिक रूप से वाइस एडमिरल कृष्णा स्वामीनाथन, फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, पश्चिमी नौसेना कमान ने, भारत में ओमान सल्तनत के राजदूत महामहिम इस्सा सालेह अल शिबानी और भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों और विशिष्ट मेहमानों की गरिमामयी उपस्थिति में हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। आईएनएसवी कौंडिन्य का निर्माण पारंपरिक सिलाई वाली जहाज निर्माण तकनीकों का उपयोग करके किया गया है, जिसमें प्राकृतिक सामग्री और तरीकों का इस्तेमाल किया गया है जो कई सदियों पुराने हैं। ऐतिहासिक स्रोतों और चित्रात्मक साक्ष्यों से प्रेरित, यह पोत भारत की स्वदेशी जहाज निर्माण, नाविकता और समुद्री नेविगेशन की समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व करत...

क्या आप जानते हैं? फतेहपुर से जुड़ी फ्रांसीसी चित्रकार नादीन ले प्रिंस

 

कला की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो अलग-अलग देशों और संस्कृतियों को जोड़ने का काम करते हैं। नादीन ले प्रिंस ऐसी ही एक फ्रांसीसी चित्रकार थीं, जिनका भारत से, विशेष रूप से फतेहपुर से, गहरा और यादगार संबंध रहा। उन्होंने अपने चित्रों के माध्यम से भारतीय जीवन को जिस संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया, वह उन्हें अन्य विदेशी कलाकारों से अलग बनाता है।
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नादीन ले प्रिंस का जन्म फ्रांस में हुआ और वहीं उन्होंने कला की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। यूरोपीय कला परंपरा से जुड़ी होने के बावजूद उनका मन केवल पश्चिमी विषयों तक सीमित नहीं रहा। नई जगहों, लोगों और संस्कृतियों को समझने की जिज्ञासा उन्हें भारत तक ले आई। भारत आने के बाद उन्होंने कुछ समय फतेहपुर में बिताया, जहाँ का शांत वातावरण और साधारण जीवन उनकी कला का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

फतेहपुर की गलियाँ, वहाँ के आम लोग, महिलाओं की पारंपरिक वेशभूषा और रोज़मर्रा के दृश्य नादीन ले प्रिंस को विशेष रूप से आकर्षित करते थे। उन्होंने इन विषयों को किसी विदेशी दृष्टि से नहीं, बल्कि मानवीय नजर से देखा। उनकी पेंटिंग्स में भारतीय जीवन सजीव, सहज और सम्मानजनक रूप में दिखाई देता है। न तो उनमें बनावटीपन है और न ही किसी तरह की अतिशयोक्ति।

उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे भारतीय समाज को यथार्थ के करीब रखती हैं। फतेहपुर के लोगों के चेहरे, उनकी आँखों में झलकती भावनाएँ और दैनिक जीवन की सादगी उनके चित्रों में स्पष्ट दिखाई देती है। यही कारण है कि उनकी कला आज भी देखने वाले को अपने समय और स्थान से जोड़ देती है।

नादीन ले प्रिंस की कला केवल चित्रकला नहीं थी, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संवाद भी थी। एक फ्रांसीसी कलाकार द्वारा भारत के छोटे से कस्बे फतेहपुर को इस तरह चित्रित करना उस दौर में बहुत खास बात थी। उनके कार्यों ने यूरोप में भारत की एक शांत, गरिमामय और वास्तविक छवि प्रस्तुत की।

आज भले ही नादीन ले प्रिंस का नाम बहुत अधिक चर्चित न हो, लेकिन उनकी पेंटिंग्स ऐतिहासिक महत्व रखती हैं। वे हमें यह समझने में मदद करती हैं कि कला किसी सीमा में बंधी नहीं होती। जब कलाकार खुले मन से किसी समाज को देखता है, तो उसकी रचना समय से आगे निकल जाती है।

फतेहपुर और नादीन ले प्रिंस का यह संबंध भारतीय कला इतिहास का एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण अध्याय है, जो यह साबित करता है कि भारत की सांस्कृतिक गहराई ने हमेशा दुनिया भर के कलाकारों को आकर्षित किया है।


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